बातचीत पाठ का सारांश | Batchit Padh Ka Sarans
प्रस्तुत निबंध वर्णनात्मक प्रकृति का है तथा इसमें भाषा और शैली में व्यवहारिकता का ध्यान रखा गया है। पूरा निबंध मोनू पाठक से संवाद कर रहा है। निबंध में बालकृष्ण भट्ट ने अत्यंत सामान्य और रोजमर्रा के विषय `बातचीतʼ को आधार बनाकर वैचारिक जागरूकता लाने की कोशिश की है। निबंधकार ने यूरोप में आर्ट ऑफ कन्वर्सेशन का उदाहरण देकर बातचीत के महत्व को बताया है। बातचीत में आकर्षण बना रहे इसके लिए यूरोप के लोग अपनी बात में सरस उक्तियों का ध्यान रखते हैं। भट्ट जी का मानना है कि हमारे यहां भी बातचीत की भाषा और उसके लिखित रूप यानी गध की भाषा सरस लोकोक्तियां से पूर्ण और मुहावरेदार होनी चाहिए। ऐसा इसलिए कि जिस राष्ट्रीय चेतना का संप्रेषण भारतीय जनता में होना चाहिए था वह आमफहम शब्दों को बाकी जैसी सरस विधा में ढ़ालकर संभव थी, भाषणबाजी से नहीं। इसलिए वे रॉबिंसन क्रूसो का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि वह तकरीबन 16 वर्षों तक मनुष्य समाज से दूर रहा वह कुत्ते बिल्ली आदि जानवरों के साथ रहता था। एक बार फ्राइडे नामक व्यक्ति के मुख से मनुष्यों जैसी बात सुनकर उसे आश्चर्य हुआ। उसने भी बोलने की कोशिश की और उसे ज्ञान हुआ कि वह जानवरों से पृथक और बातचीत कर सकता है। अपनी भावनाएं, अपने विचार, आवश्यकताएं, सुख-दुख सब कुछ दूसरों से साझा कर सकता है। अतः अपने भावों को दूसरे की सामने प्रकट करना तथा दूसरों के भाव को समझ लेना बातचीत के माध्यम से ही संभव है। आजादी के संघर्ष भरे दिनों में भारतीय जनता बातचीत के माध्यम से ही परस्पर एक सूत्र हो सकती थी और इसी अर्थ में भट्ट जी के इस निबंध का विशेष महत्व सिद्धांत होता है।